अपने-अपने बुग्याल

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राह में मिलने वाले लोग कुछ पल के ही साथी होंगे

अंतहीन बुग्यालों के भटकते पथिकों को रास्ता बताकर

उनके जर्जर सफर को रातरानी सा महकाकर
फिर ओझल हो जायेंगे

पथिकों को चाहिए कि अपने बुग्याल के सफर में गुम रहें
अनंत घास के मैदान के इश्क में खोकर
पूरी तम्मना से सफर पूरा करें

अंततः अपने बुग्याल में तम्बू गाड़कर ही याद करें राह के उन साथियों को

और याद रहे, कभी न करें उनके साथ की लालसा
क्योकि हर पथिक का अपना बुग्याल होगा, अपना साथी होगा

बेशक “मंजिल” एक ही है
बेशक “प्रेम” एक ही है
बेशक “दुनिया” एक ही है
बेशक हम सब एक ही है
सबके “साथी” अलग- अलग हैं
सबके “बुग्याल” अलग-अलग हैं


हिन्दीवाल के लिए ये पंक्तिया रोहित गड़कोटी ने लिखी हैं |  अल्मोड़ा (उत्तराखंड) । हिन्दीवाल ब्लॉग

poem by rohit garkoti

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