झुग्गियां और घर | आपदाओं पे आपदा

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झुग्गियां और घर

दोस्त, तुमने कभी आपदाओं पे आपदा आती देखी है
हर नया दिन…. जहां एक आपदा होता है
कभी महसूस किया है झुग्गियों में
कुपोषित माँओं का बच्चों को दूध ना पिला पाने का दर्द…
अरे ओ…….. आफत की सर्र-कार
ओ घमंड-पाखण्ड के कारोबार ……
वहाँ – जहाँ तुमने झुग्गी- झोपडियां देखीं
तुम्हें वहां घर नहीं दिखे ?
क्योंकि तुम्हारी सरकारों में
नहीं होता कोई संवेदना मंत्री
तुम्हारे पास होते हैं सिर्फ सांख्यिकी मंत्रालय
और होते है, कुप्रचार मंत्री
धर्म-जात और कुप्रचार का कॉकटेल बनाकर
मिलकर निचोड़ते हो वोट.
फिर तय करते हो
कि कहाँ चलाना है बुलडोजर
और क्या बकना है टीवी पर …….
दोस्त ….. तुम्हें बच्चों के खिलोंने अच्छे नहीं लगते
तुम्हारी कुंठाओं में नांचते है सिर्फ बुलडोजर”
शायद तुम्हें पता नहीं
कि उन  बच्चों के खिलौंनों में भी होते है कुछ बुलडोजर
जो उनकी सवेदनाओं में छप जाते हैं …… हमेशा के लिए..
अरे ओ पागलो,
ये धरती तुम्हारी हरकतों पर रो रही है…
बिलखते बच्चों का कोई असर नहीं है ना तुम पर
याद रखना .….
“इनकी आहों की आवाज तक नहीं आएगी
मगर, तुम मय – जहाज … डूब जाओगे एक दिन”


 

 

हिन्दीवाल के लिए ये पंक्तिया रोहित गड़कोटी ने लिखी हैं.  अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में रहते है।

हिन्दीवाल ब्लॉग

poem by rohit garkoti

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