मोहब्बत में मंजिल

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“मोहब्बत में नहीं है मंजिल……. कुछ पा जाना”
इश्क़ की सच्ची मंजिल है…इंसा का धरती- आसमां हो जाना
पिघल जाना…..या कि घुल कर एक हो जाना……..
शहरों, जंगलों, पत्थरों, चट्टानों और समुद्रों के साथ…
ये वो कस्तूरी है…..
कि महसूस करोगे सिर्फ…. तो पाओगे और तर जाओगे
“मगर पा लोगे यदि ….तो खो दोगे और मर जाओगे”….
निरंतर …. हर घड़ी… ‘एक के बाद एक कदम ‘…..बढ़ते जाना ….
सच में तो ये है…दूर होते जाना मंजिल से
“हम” हवा, पानी और मिट्टी के पुलिंदों की….
“सही मंजिल है… टूट कर….. पुन: मिल जाना मूल में अपने”…
फिर भी ये सफर, ….. जिसे हम जीवन कहते रहे हैं…..
“है शायद… मोहब्बतों के अहसासों को जीने के लिए…
सिर्फ नहीं …. किसी मंजिल के दीवानेपन के लिए”

हिन्दीवाल के लिए ये पंक्तिया रोहित गड़कोटी ने लिखी हैं.  अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में रहते है।

हिन्दीवाल ब्लॉग

poem by rohit garkoti

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